Friday, September 12, 2014

बंजारे से जब पूछा

अस्थिरता है जीवन में,बहाव में क्या मज़ा है
दुनिया को खुद में समेटने से क्या मिला है
आकाश में उड़ते पक्षियों को टुकटुकाकर देखने में क्या रखा है
बढ़ते हुए कदमो से तो रुका हुआ रास्ता भला है
नदिया के बहते पानी ने किनारो को भी कभी कुछ दिया है

बंजारे से जब पूछा

चाँदनी रात में घूमने में क्या मज़ा है
सूरज की किरणों से लड़ने से क्या मिला है
सिमटे जीवन को बिखेरने में क्या रखा है
ऐसे जीवन से तो दंड भला है
पंछी की उड़ान ने आसमान को भी कभी कुछ दिया है

बंजारे ने तब बस इतना कहा

ऐसी ज़िन्दगी है मेरी और ज़िन्दगी जीने में सबसे बड़ा मज़ा है

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