Friday, September 12, 2014

बंजारे से जब पूछा

अस्थिरता है जीवन में,बहाव में क्या मज़ा है
दुनिया को खुद में समेटने से क्या मिला है
आकाश में उड़ते पक्षियों को टुकटुकाकर देखने में क्या रखा है
बढ़ते हुए कदमो से तो रुका हुआ रास्ता भला है
नदिया के बहते पानी ने किनारो को भी कभी कुछ दिया है

बंजारे से जब पूछा

चाँदनी रात में घूमने में क्या मज़ा है
सूरज की किरणों से लड़ने से क्या मिला है
सिमटे जीवन को बिखेरने में क्या रखा है
ऐसे जीवन से तो दंड भला है
पंछी की उड़ान ने आसमान को भी कभी कुछ दिया है

बंजारे ने तब बस इतना कहा

ऐसी ज़िन्दगी है मेरी और ज़िन्दगी जीने में सबसे बड़ा मज़ा है

Tuesday, September 9, 2014

देश का कैसे होगा सुधार
जब नेता बस ताने है आलोचना की तलवार 
विकास को कैसे बनाए मुद्दा 
जब नज़रो में है केवल सत्ता 
दोषारोपण के इस दौर में
मन में सबके बैर है 
कस रहा वह ही कटाक्ष है
दामन में खुद जिसके दाग है
उन्नति की बदली है परिभाषा 
स्वयं को उठाने के लिए दूजे को है गिराना 

जहाँ बन रहे है सभी समीक्षक 
वहां कैसे बने कोई प्रगति का उत्प्रेरक ॥ 

Friday, September 5, 2014

सुबह सुबह सड़क के गड्ढ़ो को पानी से भरा देखा तो लगा दिल्ली के सिर्फ गरज़ने वाले बादल कल रात कुछ बरस भी गए थे। दिन के चढ़ने के साथ साथ मेघो ने सूरज को घेर आसमान पर अपना अधिपत्य कर लिया था । धरती की तपन ने अब इनको भी विचलित कर बरसने पर मजबूर कर ही दिया था । ऑफिस से निकली तो हलकी हलकी बूंदों को तेज़ बौछार में बदलते देखा । आज ये बादल  धोका देने के इरादे से नहीं आए थे । इतने दिनों से आँख मिचौली खेलते मेघो ने आज खुल कर पानी गिराने का निश्चय कर लिया था। इस मूसलाधार वर्षा के कारण सड़क पर होने वाला कीचड़,हर पग पर रुका हुआ ट्रैफिक और बारिश में तर पूरा जनजीवन,ये दिल्ली शहर के लिए एक दुर्लभ सा दृश्य बन गया था इस वर्ष ।