Friday, April 10, 2015

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लकीरो से तो केवल धरती बटी है
आकाश भी कभी किसी सीमा में बंधा है
सम्भावनाओ के भंवर में तो केवल मस्तिष्क फसा  है
मन की आकांक्षाओं को कुछ सुध ही कहा है
कदमो ने तो केवल रास्ता मापा है
आसमान की उड़ान की कोई हद ही कहा है
आशंकाओ ने तो केवल वास्तविकता को जकड़ा है
सपनो पर कोई पाबन्दी कहा है ।



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