समय ये भी अलबेला है
जाने खेल कैसे खेला है |
कभी बह गया ये आँखों से पानी बन कर
कभी छलक गया ये अधरों पर मुस्कान बन कर |
कभी वो काले मेघ जो गम के थे
बरस गए दरिया जहा सुख का था |
कभी एक झीनी सी उम्मीद की किरण से
सूख गया वो दलदल जो दुःख का था |
कभी सपने जो शीशे से साफ़ थे
धुंदला दिए वो बदलाव के थपेड़ो ने |
कभी अभिलाषाए जो गुमसुम सी थी
चहक उठी एक पल से ही |
समय ये भी अलबेला है
जाने खेल कैसे खेला है |
Good one...
ReplyDeletethanx :)
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