अपने ही विचारो के मंथन में
जीवन को समझने के चिंतन में
एक प्रतिबिम्ब सा दिखा मुझे
हाँ ये परछाई है मेरी ही अकांक्षाओ की
एक गहराई में उतरना है
जिसकी सतह भी है अभी अनछुई
इस अथाह महासागर में खोजना है
अपने ही मन के रहस्यों को
एक लहर सी है इन विचारो की
एक उथल पुथल सी है कुछ सवालो की
एक अंतकर्ण को अब छूना है
अपनी ही सोच को अब समझना है
Another Good one
ReplyDeletethanx :) :)
ReplyDeletea blog award for you :)
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