धरती ने पहना आज सफ़ेद चोगा है
हर ओर प्रकृति की कला का दिव्य नज़ारा है
बर्फ के इस आवरण में पर्यावरण और भी मनोहर है
सौम्यता की बेला में सुंदरता बिखरी हर दृश्य में है
सफ़ेद वस्त्रो में वृक्ष् भी कैसे इठला रहे है
सजी है सृष्टि ऐसे जैसे कोई त्यौहार मना रहे है
पर यत्र तत्र सर्वत्र
सिर्फ बर्फ का ही अस्तित्व है
इस लगातार गिरती बर्फ से
जनजीवन कुछ तो विचलित है
ढूँढ रहा हर जीव अपना ठिकाना है
इस सफेदी का साथ जाने कब तक निभाना है
मंत्रमुग्ध करता है वातावरण
पर सामान्य जीवन बाधित है
प्रकृति की यह है कोई पहेली
या शायद कोई अपनी हंसी ठिठोली है
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