वो बन कर बिखर कर फिर सवंरा है
गर्दिशों में खोकर फिर चमका है
वो बहक कर गिर कर यूँ संभला है
बंधनो से खुल कर उड़ कर कुछ निखरा है
उसने दुःख में भी पाया और सुख में भी खोया है
ज़िन्दगी के हर पहलु को कई नज़रियों से देखा है
वो हर मोड़ पर भटक कर यहाँ पहुंचा है
तुम कहते हो इसे बुढ़ापा
वो कहता इसे जीवन का तज़ुर्बा है ।
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