छोटे छोटे रास्तो की मंजिल कहीँ दूर है
आरम्भ था कही और अन्त कहीँ और है ।
दबी हुई आहटो मे भी कोई शोर है
शाम ऐसे चल रही जैसे भोर यहीं पास है
पुरानी कहानी मे जैसे जुड़ रही नई डोर है
धुँधला रहे कुछ पन्ने मिट रहे कुछ किस्से
बुन रहे कुछ सपने बन रहे कुछ अपने
कुछ सहमी कुछ सकुचि कुछ ठिठकी
कुछ हंसती कुछ खिलखिलाती
आशाओ का यह दौर है
कुछ सहमी कुछ सकुचि कुछ ठिठकी
कुछ हंसती कुछ खिलखिलाती
आशाओ का यह दौर है
आरम्भ था कही और अन्त कहीँ और है ।
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