Wednesday, September 28, 2011

सोच की खोज

अपने ही विचारो के  मंथन में
जीवन  को समझने के चिंतन में
एक प्रतिबिम्ब सा दिखा मुझे
हाँ ये  परछाई  है मेरी ही अकांक्षाओ की
एक  गहराई  में उतरना है
जिसकी  सतह भी है अभी अनछुई
इस अथाह महासागर में खोजना है
अपने ही मन  के  रहस्यों  को
एक लहर सी है इन विचारो की
एक उथल पुथल सी है कुछ सवालो की
एक  अंतकर्ण को अब छूना है
अपनी ही सोच को अब समझना है







Monday, September 19, 2011

कुछ बातें जो मन चाहे


ज़िन्दगी के घुमावदार रास्तो में
अब कही खोने का मन करता है|
एक लम्बी सी  सपनो भरी नीद 
अब सोने का मन करता है|
समय के पन्नो को
अब पीछे पलटने का मन करता है|
वो कुछ पुराने दिन
अब  दोबारा  जीने का मन करता है|
इस लम्बे सफ़र में कहीं
अब कुछ देर रुक जाने  का मन करता है |
कुछ अनकही सी बातो को
अब कहने का मन करता है|
इन गुजरतो हुए पलों में
अब कही बहने  का मन करता है|





Wednesday, September 14, 2011

life....

I have learnt that friends cannot be perfect but frienship can be.
And the perfectness of friendship is to see through the imperfections of each other.

I have understood that life changes in a way that can never be anticipated.

I have come to know that no matter how much we have to regret
but cannot refrain ourselves from making some mistakes.

I have realised that people will have different opinions
and it will be difficult to respect them.

I have noticed that  happiness and unhappiness lies in vicious circle.

I have seen that most of the times sweetness of a person is utilised by shrwedness of another.

I have experienced that there are things that just happens.


I feel the most difficult thing is to find a real friend with whom you can share your life



And I believe that there will always remain some emotions unexpressed,some things unsaid and some posts  unpublished.










बदलता सा समय

समय ये भी अलबेला है
जाने खेल  कैसे खेला है |

कभी बह गया ये आँखों से पानी बन कर
कभी छलक गया ये अधरों पर  मुस्कान बन कर |

कभी वो काले मेघ जो गम के थे
बरस गए दरिया जहा सुख का था |

कभी एक झीनी सी उम्मीद की किरण से
सूख गया वो दलदल जो दुःख  का था |

कभी सपने जो शीशे से साफ़ थे
धुंदला दिए वो बदलाव के थपेड़ो ने |

कभी अभिलाषाए जो गुमसुम सी थी
चहक उठी एक पल से ही |

समय  ये भी अलबेला है
जाने खेल कैसे खेला है |