यह जो अंधेरो को चीर
रात्रि को पीछे छोड़
प्रकाश की ओर
सवेरे से मिलने को अधीर
अपनी मस्ती में चूर
आगे बढ़ रही है लोहपथगामिनीं ।
हर स्टेशन पर है भीड़
भीड़ के चेहरे पर उम्मीद
यह जो हुई कुछ समय की देर
जो खींची किसी ने जंजीर
फिर भी यात्रियों का स्वागत भरपूर
करती जा रही है लोहपथगामिनीं
न किसी से कोई होड़
बस अपने गंतव्य स्थान की ओर
बढ़ती जा रही यही लोहपथगामिनीं।
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