Friday, December 6, 2019

हैप्पी Five

पाँच वर्षो के राग को
पाँच पंक्तियों में व्यक्त करना मुमकिन नहीं
लेकिन शब्दों की माला से उम्दा
कुछ भावो की अभिव्यक्ति नहीं

यह मौका कुछ खास है
विवाह की पाँचवी वर्षगांठ है
इन वर्षो के अनुभव लाजवाब है
दो परिवारों का इसमें अभिदान है
एक दूसरे का साथ हो रहा बलवान है
समय की यही पहचान है
दोनों की एक दूजे पर छवि अंकित है
पर मीठी नोक झोंक की क्रिया भी नियमित है
यह एक ऐसा पड़ाव है
जहाँ से नए सफर की शुरुआत है

Monday, December 2, 2019

...

कुछ मोमबत्तियो से फिर विरोध होगा
सडको पर कही भीड़ का फिर आक्रोश होगा
संसद में एक विवाद यह भी होगा
महिला सुरक्षा पर विचार थोड़ा और भी होगा

सजा नई कोई तय होगी
न्याय की तारिख की बात भी होगी
पर अँधेरे से अब वो थोड़ा और डरेगी
भीड़ में जब भी अकेली होगी तो बेचैन रहेगी
विश्वास न किसी अजनबी पर न अपनों पर करेगी
हौंसला तो स्वयं पर रखेगी पर संदेह दुनिया पर करेगी

उसके स्वाभिमान का खंडन अब जो और होगा
उसकी स्वतंत्रता का हनन अब जो फिर से होगा
उसके ह्रदय की ज्वाला से फिर ऐसा विध्वंस होगा
संसार अपने ही अस्तित्व का फिर वैरी होगा





Saturday, November 30, 2019

लोहपथगामिनीं


यह जो अंधेरो को चीर
रात्रि को पीछे छोड़
प्रकाश की ओर
सवेरे से मिलने को अधीर
अपनी  मस्ती में चूर
आगे बढ़ रही है लोहपथगामिनीं ।

हर स्टेशन पर है भीड़
भीड़ के चेहरे पर उम्मीद
यह जो हुई  कुछ समय की देर
जो खींची किसी ने  जंजीर
फिर भी यात्रियों का स्वागत भरपूर
करती जा रही है  लोहपथगामिनीं

न किसी से कोई होड़
बस अपने गंतव्य स्थान की ओर
बढ़ती जा रही यही लोहपथगामिनीं।   

चंपक

एक शाम स्टेशन पर देहरादून जाने वाली गाड़ी  का इंतज़ार करते समय जाने कैसे बचपन में पढ़े जाने वाली चंपक की चर्चा निकल आई। फिर क्या था  मौके और दस्तूर को समझते हुए मेरे पति मेरे लिए चंपक खरीद लाए।
पहले तो मुझे  थोड़ा आश्चर्य हुआ की आज के समय में जहाँ  ९०के दशक की सभी वस्तुएँ  विलुप्त सी  हो गई है (जैसे कैसेट ,हमारे बचपन के खेल) वहां चंपक आज  भी अपना अस्तित्व बनाये हुए  दुकानों पर उपलब्ध है।
जैसे आज के समय के बच्चो के पास अपना ऐमज़ॉन  और नेटफ्लिक्स का सब्सक्रिप्शन होता है ,मेरे बचपन में मेरे पास चंपक का सब्सक्रिप्शन हुआ करता था।
हर माह २ चम्पक निकलती थी जो अख़बार वाला मुझे दे जाता था।   मैं वह पुस्तक हाथ में आते ही सब कुछ भूल कुछ ही घंटो में उसे पूरा पढ़ लेती और फिर बेसब्री से माह के अगली प्रकाशन का इंतज़ार करती। उस दिन चंपक हाथ में आते ही बचपन की वह सब स्मृतिया जीवंत हो उठी।  पर मन में आज के दौर में इस किताब  की  महत्वता  को लेकर सवाल जरूर आया। स्टेशन की भीड़ और गर्मी को भूलाने के लिए  मैंने  चंपक  कुछ देर को पढ़ने  का निर्णय लिया।  मुझे खुद पर अचरज हुआ की कैसे हर नए पन्ने के साथ मेरा उत्साह बढ़ता जा रहा था।
मुझे आभास हुआ की भले ही चंपक के रूप में बदलाव आ गया हो पर सरचना अब भी पहले की तरह ही है।
अपने बचपन में तो मैं बस पढ़ने में आनंद लेती थी ,लेकिन अब  मुझे एहसास हुआ की इन सरल सी कहानिओ के माध्यम से छोटे बच्चो को कुछ सीख देने का प्रयत्न किया गया है। कितनी सीधी और निष्कपट बातें।
कहानियां ,कार्टून,चुटकुले ,बूझो  तो जाने ,बिंदु जोड़ कर आकृति बनाने वाले खेल ,यह सब कुछ  मिल कर चंपक बनी थी। इसमें थी ज्ञानवर्धक बातें ,बच्चो द्वारा दिए गए हसीं  के  झरोके(चुटकुले) ताकि उन्हें भी अवसर और प्रोत्साहन मिले।
जमाना पूरा बदल गया है पर चंपक का आरूप आज भी स्थिर है।
टिक टोक ,इंस्टाग्राम में खोये बचपन के पास अब भी मौका है चंपक की रंगीन दुनिया में खोने का।



Tuesday, January 1, 2019

नव वर्ष २०१९


नए साल की देहलीज़ को इस बार जब पार करो
तो मीठी बातो ,अधूरी चाहतो की गठरी को साथ ले आओ
जो बूरा है उसे छोड़ आओ
सुखद यादो के साथ बस चले आओ

कहानिओ के पुलिंदे से थोड़ी  सीख ,थोड़ी हसीं
के किस्से  ले आओ
कुछ सपनो की  ,उन अपनों की
ऊँगली पकड़ बस चले आओ

नव वर्ष के आलिंगन में
गत वर्ष को भो खींच  लाओ
और २०१८ के सभी उपहारों
के संग  हर्षोउल्लास से चले आओ