Wednesday, December 30, 2015

नववर्ष

नववर्ष का जश्न फिर शुरू हुआ
गत वर्ष ने यादो का नया पिटारा दिया

कही नई सीख कही पश्चाताप दिया
आगे बढ़ते रहने का उत्साह दिया

२०१६ का स्वागत  और अनोखा होगा
आने वाला साल और  भी आधुनिक होगा

कैलेंडर में जुड़ गया एक और साल
नए तजुर्बे से बंध गए जीवन के तार

आएंगे सारे त्योहार लेकर कुछ अलग बात
आएंगी ऋतुए दोबारा एक नई  ताज़गी के साथ

आने वाली सुबह और भी उजली होगी
मन की रौशनी की चमक नए साल में होगी



Saturday, August 1, 2015

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आसमान को छूने की थी चाहत उसकी
पर धरती को समझने में ही बरसो बीत गए
कहा से आसान होगी डगर उसकी
यह जानने  में ही सादिया बीत गई
सपने तो बहुत थे आँखों में उसके
पर नींद से जागने में ही सुबह बीत गई
कदमो पर तो था भरोसा उसके
पर रास्ता मापने में ही जिंदगी बीत गई

हुनर से मंजिल को पाने के संघर्ष में
उसकी सफल होने की चाह बीत गई ।



Wednesday, April 15, 2015

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बुद्धिबल अगर चाहिए
तो समझो एक उपाय
बुद्धि है तलवार सी
घिसे बार बार तो हुए तेज़ है धार।
जो जाननी है इच्छाशक्ति
तो देखो नदी का बहाव
चीर चट्टान जो है चली
अपने लक्ष्य की ओर।
जो हो जाओ लाचार
तो चलो चील की चाल
अपने पुनःजीवन के लिए
जो करे घोर संघर्ष।
चलो चील की चाल
और जीतो पूरा संसार। 

Friday, April 10, 2015

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लकीरो से तो केवल धरती बटी है
आकाश भी कभी किसी सीमा में बंधा है
सम्भावनाओ के भंवर में तो केवल मस्तिष्क फसा  है
मन की आकांक्षाओं को कुछ सुध ही कहा है
कदमो ने तो केवल रास्ता मापा है
आसमान की उड़ान की कोई हद ही कहा है
आशंकाओ ने तो केवल वास्तविकता को जकड़ा है
सपनो पर कोई पाबन्दी कहा है ।



Wednesday, February 25, 2015

किस्से

किस्से जो कहानियो में मजा देते है
ध्यान से देखा तो सबके जीवन में ही गूंजते है 
बेशक पिरोता नहीं है उन्हें हर कोई कहानिओं में 
पर जीता है उन्हें हमेशा अपनी तन्हाईओं में 
लच्छेदार सी बातों में वो रोचक से किस्से 
कभी हंसी के तो कभी आंसुओ के किस्से 
है बड़े रसीले सभी ये किस्से
नहीं मिलेंगे किसी किताब में जो 
वो है तेरे मेरे जीवन के किस्से  । 









Monday, February 9, 2015

राजनीति का नया दौर

जो नहीं है दिल्ली में
वो भी जीत का आनंद जताए 
राजनीति का यह अलग अध्याय है 
परिवर्तन ही अब हर जगह स्थायी है 
कुछ ऐसी है बाजी पलटी 
मई में जिनकी अदभूत जीत थी 
अब शर्मसार उनकी हार है 
बदलाव ही आम आदमी की गुहार है
क्यूंकि आम आदमी को अब इस व्यवस्था से इंकार है




Wednesday, February 4, 2015

मेरी पहली बर्फ़बारी

         
         
 धरती ने पहना आज सफ़ेद चोगा है 
 हर ओर प्रकृति की कला का दिव्य नज़ारा है 
 बर्फ के इस आवरण में पर्यावरण और भी मनोहर है 
 सौम्यता की बेला में सुंदरता बिखरी हर दृश्य में है 
 सफ़ेद वस्त्रो में वृक्ष् भी कैसे इठला रहे है
 सजी है सृष्टि ऐसे जैसे कोई त्यौहार मना रहे है  

 पर यत्र तत्र सर्वत्र 
 सिर्फ बर्फ का ही अस्तित्व है 
 इस लगातार गिरती बर्फ से 
 जनजीवन कुछ तो विचलित है 
 ढूँढ रहा हर जीव अपना ठिकाना है 
 इस सफेदी का साथ जाने कब तक निभाना है 

मंत्रमुग्ध करता है वातावरण 
पर सामान्य जीवन बाधित है 
प्रकृति की यह है कोई पहेली 
या शायद कोई अपनी हंसी ठिठोली है