Tuesday, February 16, 2010

"मेरा जीवन एक सपाट ,समतल मैदान है, जिसमे कही-कही गड्ढे तो हैं,पर टीलों,पर्वतो ,घने जंगलो ,गहरी घाटियो और खंडहरों का स्थान नहीं है । जो सज्जन पहाड़ो की सैर के शौक़ीन है ,उन्हें तो यहाँ निराशा ही होगी ।
"

प्रेमचंद

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