मैं एक किनारा हूँ ,गंगा नदी का किनारा। मेरे ही ह्रदय को छू कर
तुम इस तरंगिनी को नमस्कार करते हो। मैं कही त्रिवेणी घाट हूँ ,
कहीं तुलसी घाट तो कहीं सिर्फ़ एक किनारा। मैं कहीं पूजनीय
हूँ तो कहीं उपेक्षित .मैं कही घिर गया हूँ श्रधालुओ की भीड़ से तो
कहीं खो गया हूँ सन्नाटे में । मैं सहचर हूँ मन्दाकिनी का गोमुख
से बंगाल की खड़ी तक का । सुरसरिता जब पूरे वेग से बहती है
तो मैं समां जाता हूँ इसी तटिनी में। मैं भागिरिथी को तब से
जानता हूँ जब इसका जल व्योम सा नीला होता था । सूर्य की
पहली किरण जब इस जलमाला पर पड़ती तो वातावरण
अभिमंत्रित हो जाता। नभचर भी इस बेला पर जैसे नाच उठते ।
मैंने देखा हैं गंगा की शान्ति को, गंगा की क्रिदाओ को और गंगा के
रुदन को भी। मैंने देखा हैं मनुष्यो को गंगा के प्रकोप से काल का
ग्रास बनते हुए। मैं साक्षी हूँ उनकी मृत्यु का पर दोषी नहीं ।
प्रतिदिन देखता हूँ हजारो लोग आते हैं देवनदी के दर्शन को, कुछ
जीवन का अनुष्ठान करने तो कुछ किसी आत्मा को विदा करने ।
यहाँ आने वाले गंगा की पूजा करते हैं ,गंगा को माँतुल्य कहते हैं।
गंगा सब को आशीर्वाद देती हैं पर मैं रोते हूँ जब इन बच्चो को
अपनी ही माँ को दूषित करते देखता हूँ। तुम मेरे आंसू नहीं देख
सकते वो सम्मिलित हो जाते है गंगा में ही। तुम मेरा दुःख नहीं
समझ सकते वो खो जाता है गंगा के प्रवाह में कहीं और मैं रह
जाता हूँ अनदेखा, अनसुना ।
मैं एक किनारा हूँ गंगा नदी का किनारा।
there r some spellin mistakes in this post, i m really sorry for that but i can't rectify them. i m facin loads of technical problems in editin this post.
ReplyDeleteawesome
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