बात ये कुछ विपरीत हुई ।
वर्ष के आखिरी दिन में कविता ये पहली हुई ।
जीवन की व्यस्तता से विचारो में कुछ अव्यवस्था हुई।
कारणवश लेखन में हमारे थोड़ी बाधा हुई।
उत्प्रेरणा की तो कभी कोई अल्पता नहीं हुई।
पर शायद खयालो की थोड़ी स्वच्छंदता कम हुई।
अनुभव २०१६ में भी कई नवीन हुए।
पर शब्दो में ढलने में कुछ विफल हुए।
पुराने दृश्य कुछ और रंगीन हुए।
पर केवल फेसबुक की ही शान हुए।
फिल्म के साथ इस साल नोट भी बैन हुए।
पर ऐसे कार्यक्रम भी इस ब्लॉग से कुछ दूर हुए।
समय की तो हर वर्ष समानता ही हुई।
सम्भवतः इस वर्ष अलग कृत्यो की प्राथमिकता हुई।
वर्ष के आखिरी दिन में कविता ये पहली हुई ।
जीवन की व्यस्तता से विचारो में कुछ अव्यवस्था हुई।
कारणवश लेखन में हमारे थोड़ी बाधा हुई।
उत्प्रेरणा की तो कभी कोई अल्पता नहीं हुई।
पर शायद खयालो की थोड़ी स्वच्छंदता कम हुई।
अनुभव २०१६ में भी कई नवीन हुए।
पर शब्दो में ढलने में कुछ विफल हुए।
पुराने दृश्य कुछ और रंगीन हुए।
पर केवल फेसबुक की ही शान हुए।
फिल्म के साथ इस साल नोट भी बैन हुए।
पर ऐसे कार्यक्रम भी इस ब्लॉग से कुछ दूर हुए।
समय की तो हर वर्ष समानता ही हुई।
सम्भवतः इस वर्ष अलग कृत्यो की प्राथमिकता हुई।