जीवन रूपी पौधे के
लिए नीर हूँ मैं ।
धूप में चलते पथिक के
लिए छाँव हूँ मैं ।
अनिवार्य हूँ सफलता के लिए
पर कभी संगी हूँ दुःख का भी ।
मैं परिवर्तन हूँ।
मेरी अनुपस्थिति से
भावशून्य है जग सारा ।
मैं कारण हूँ चिंता का
तो कभी प्रेरणा हूँ श्रम की।
मुझसे अस्तित्व है
सुख का भी और दुःख का भी ।
शक्ति हूँ आशा को निराशा में,
पराजय को विजय में परिवर्तित करने की ।
और विवशता हूँ स्वत: को
ही परिवर्तित न कर सकने की ।
मैं विरोधी हूँ स्थिरता का
पर मैं स्वयं ही स्थिर हूँ।
मैं परिवर्तन हूँ ।